Tuesday, 3 June 2014

वो गीत ऐसा गाउँ ..



भाव समर्पण 

वो गीत ऐसा गाउँ  जो फूलों को महकना सिखा दे 
संगीत वो ऐसा हो जो पाखी को चहकना सिखा दे !

तान वो ऐसी  बजाऊं , जो झरनो को जीवन दे दे 
नदियाँ बह चले  कल-कल छल-छल जीवन बन !

तनी  शक्ति वो पाऊँ कि सूखे उपवन खिल जाये 
मुस्कराहटें फैले चहुँ ऒर तो ही संज्ञानी  मैं कहलाऊं

तुमको पलट समझा सकूँ  जीवन का मतलब क्या !
तो मानूँ आदेश है तेरा वर्ना ठहरा निरा अभिमानी !

पलपाती हुई लौ संभल जल पूर्ण स्थिरता के साथ
जीवन को अब जीवन देखे सम्पूर्ण पूर्णता के साथ !

वो   गीत   ऐसा  गाउँ , संगीत   वो   सजाऊँ 
वो तान ऐसी बजाऊँ , जो शक्ति इतनी पाऊं 


प्रार्थना  

गुरु न कहलाऊं कभी भी जीवनपथ से  भटक जाऊंगा 
सौ आगे सौ पीछे डोले तो कहीं व्यसनी न बन जाऊंगा 

कर्त्तव्य भूल न  खो जाऊं चमक दमक की इस माया में
प्रभु न इतना देना मान, जहाँ  पे अटके सिर्फ अभिमान 

इसी जगह  तेरे  चरणो में बैठ सब सीखू  और बतलाऊँ  
देना बस इतना ही तू भी संतुष्ट हो और मैं तुष्ट हो जाऊं 

शक्ति है सिमित  इतना ही दम  की तुझपे प्रेम लुटाऊँ 
इतने से समझ सके जो तो  वो भी तेरा ही प्रेमी कहलाये 


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ॐ  ॐ  ॐ 

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