Sunday, 22 June 2014

सुन मोरी गुइयाँ !



शाकुनिक बिछायो  जाल  है  भारी ,  सुन  मोरी  गुइयाँ
दाना चुगन  जो लागि झट लियों मोहे फसाएं
माति  थी म्हारी निपट मारी 
सुन मोरी गुइयाँ  !......................................................

वा बगीचा नियरा  सुन्दर पेडन झुरमुट बिच देस हमारा 
सबहिन से छिपके  बैठी थी सह्माये 
भूक प्यास  सतावन लागि
सुन मोरी गुइयाँ  !......................................................

घने पत्तन बिच पातर डाली वापे बैठी, देखि गई भरमाये 
रंगबिरंगा जाल बिछाई उपे दाना दई छिड़काए 
निहुरे सिकारी गयो लुकाय
सुन मोरी गुइयाँ  !......................................................

मैं न जानी  , न कुछ समझी  खावन  गयी उतराये 
इत्ता सुन्दर दाना पाए के सुधबुध गयी भुलाये 
फंस गयी जाल मा मुरख 
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................

अब फांसी उलझी ही जाऊँ सुलझा न पाउन एकउ गाँठ 
देख उलझा मो को  सिकारी  रह्या  मुस्काये 
इब मो को कोई बचाओ 
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................

घना वृक्ष  ठौर-ठिकाना म्हारा  माया-निर्मित था ताना बाना 
इक्छाओं के  सुन्दर दाने डाले
वा मे गयी बिसराये 
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................

दाना चुगण बैठ मैं ऐसी भूली मो को  सुध बुध गयी  भुलाये 
घर को भूली ,  खुद को भूली 
माया रही मुस्काये 
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................

समय बीत मोहे सुध है आई कौन जतन करू अब मै माई 
तबहिन  बिजुरी  चमकी आसमान मा  
आपन हाथ  दीयों बढ़ाई
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................

इबसौं जाल कटा माया का,औ नयनन से दाने ओझल हुईगे 
बच गयी कइसन कोन सो न जानू 
बचावनहार शत शत परनाम
सुन मोरी गुइयाँ  ! ......................................................


















© All rights reserved

No comments:

Post a Comment