शाकुनिक बिछायो जाल है भारी , सुन मोरी गुइयाँ
दाना चुगन जो लागि झट लियों मोहे फसाएं
माति थी म्हारी निपट मारी
सुन मोरी गुइयाँ !......................................................
वा बगीचा नियरा सुन्दर पेडन झुरमुट बिच देस हमारा
सबहिन से छिपके बैठी थी सह्माये
भूक प्यास सतावन लागि
सुन मोरी गुइयाँ !......................................................
घने पत्तन बिच पातर डाली वापे बैठी, देखि गई भरमाये
रंगबिरंगा जाल बिछाई उपे दाना दई छिड़काए
निहुरे सिकारी गयो लुकाय
सुन मोरी गुइयाँ !......................................................
मैं न जानी , न कुछ समझी खावन गयी उतराये
इत्ता सुन्दर दाना पाए के सुधबुध गयी भुलाये
फंस गयी जाल मा मुरख
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................
अब फांसी उलझी ही जाऊँ सुलझा न पाउन एकउ गाँठ
देख उलझा मो को सिकारी रह्या मुस्काये
इब मो को कोई बचाओ
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................
घना वृक्ष ठौर-ठिकाना म्हारा माया-निर्मित था ताना बाना
इक्छाओं के सुन्दर दाने डाले
वा मे गयी बिसराये
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................
दाना चुगण बैठ मैं ऐसी भूली मो को सुध बुध गयी भुलाये
घर को भूली , खुद को भूली
माया रही मुस्काये
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................
समय बीत मोहे सुध है आई कौन जतन करू अब मै माई
तबहिन बिजुरी चमकी आसमान मा
आपन हाथ दीयों बढ़ाई
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................
इबसौं जाल कटा माया का,औ नयनन से दाने ओझल हुईगे
बच गयी कइसन कोन सो न जानू
बचावनहार शत शत परनाम
सुन मोरी गुइयाँ ! ......................................................
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