भावना_ समंदर
शब्द_लहरें और
ध्यानरूप_नाव
मन स्थिर हो
अभ्व्यक्ति बनी
प्रेमपराकष्ठा
मन डूबता नहीं !
मत्स्य-तमन्नाएँ
अठखेलियां करती
खेलती तैरती थक
बैठती पल भर को
मौन का पल
कीमती वो !!
भाव-नाव उतारी
उफनते समंदर
शब्द लहरो में
भाव का तैरना
सागर के उठते
ज्वार बीचोंबीच
शब्दों की लहरे
मध्यह्रदयस्थल में
अठखेलियां करते
उन्नत लहरों पर
फिसलते हुनर से,
कुशल हुए हम
और गहरे तलहटी
में ठहरे रुके से
नायब बेशकीमती
नगों को निकाल
ला, वो तराशना !!
ज्वार में ही सीखा
लहरों से खेलना
फिसलना उतराना ;
और संभव हुआ
बच बाहर निकलना
काव्य जो सिखाता
ऐसे जीवन जियो
तैरो फिसलो खेलो
जब तक दिल कहे ;
फिर लौट आओ
सागर तट पे बैठ
शांत हो निहारो
उन्ही लहरो को
जिन पे थे सवार ;
अभी तक !
" मौन का ये पल , प्रेममय जीवन जी गए !!"
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