Sunday 31 May 2015

अपना अपना जीवन




सबके  अपने  
अपने   घड़े 
सबकी अपनी
अपनी प्यास 
सबमे इक्छा-भोग
परिणाम  टपकता
रत्ती रत्ती  जलकण 
बनाता आहिस्ता
भोग गति को
तरळ  सरळ 

कौन किसको 
खोज रहा है 
सभी आश्रित  
है आश्रयदाता 
सभी  भिखारी 
सभी अमीर 
अचरज भरा 
सत्य , साधु
का  दूजा छोर 
मिलता वैश्या से
ये है एक धागा  
सिरे विपरीत
जुड़े हुए जोड़े से 
अपना - अपना 
जीवन काट रहे है

भगवन-भक्त
मंदिर-पुजारी 
नेता - जनता 
मित्र और मित्र 
या शत्र संग शत्रु  
एक ही संयोग
शत्रु रूप मित्र 
मित्र-रूप शत्रु
माँ औ संतान 
खून सम्बन्ध 
जैसे  समाज
के गठबंधन  
औ सर्वोपरि 
ज्ञान अग्यान  
भरा सम्बन्ध  

ये  टुटा  कच्चा 
बर्तन मिटटी का 
सात   छेद    है 
है  सात   द्वार 
आना औ जाना 
खोखल  अंदर 
फूंक हवा इसमें 
गाये  बांसुरी 
अधूरा टूटा 
माधुर  गान ____

बूँद  बूँद ज्यूँ  
भरता  जाए 
बूँद  बूँद त्यूं 
रिसता जाए
अंत आगाज 
जैसा था वैसा 
ही रह जाए 
पापी  खाली 
सिद्ध खाली
सूफी खाली 
दानव खाली 
दोनों पक्षों के- 
वीर खाली 
रुग्ण खाली 
स्वस्थ खाली 
ज्ञानी सहित 
अज्ञानी खाली 
खाली बर्तन 
ढक्कन खाली 
विदा की बेला 
खाली  खाली 
चल  उड़ हंसा 
ज्यूँ की त्यूं धर 
दीनी चंदरिया ___!

बिछुड़े कह के
बस फिर मिलेंगे
आते रहेंगे जल्दी 
अलविदा कौन 
कहता है___!
क्या ज्ञानी 
क्या अज्ञानी 
किसकी मुक्ति 
किसकी बानी 
इक बसे मूर्ति में 
दूजा उतारें आरती 
करें बुलावा एक दूजे  का , 

माया महाठगनी- 
हम जानी!
कर्म की चक्की 
भोग का दाना 
मूठी-मूठी पड़ता
गिर पिस जाता 
कर्मभोग आटा 
यज्ञाहुति है 
सुबह शाम की  
धौकनी  में 
भाव / अन्न 
पड़ता जाता 
काल चक्की में
गिरते पड़ते बढ़ते 
स्वतः हजम होता जाता 

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