Saturday 9 May 2015

छद्म




कहा उसने अँधेरे में पड़े उससर्पसम को   
सर्प नहीं रस्सी का टुकड़ा मायाभासित 
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सन्दर्भ बदले अर्थ के अब रस्सी सर्प है 
मायावी ये छद्म रूप बदलना जानते है  
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सलीके से अपनी अपनी खूंटी पे मौन है   
विषदंतक हैं ,विष उगलना भी जानते है

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