आह ! जिंदगी...
आह ! हाशिया सा लग जाता है
ख्वाहिशों के जमा पुलिंदे लिए
इन्सां अचानक ही उठ जाता है
न कह पाना, न कुछ सुन पाना
रूह वक्त मुक्कमल हो जाता है
.
उम्र के साज पे झनझनाते तार
कहते हैं गुनगुना जीभर के राग
साजआवाज का ये संगम कहाँ !
आज की सोंधी महक, अब में है
बीतते कल परसों बरसों में कहाँ.
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