Wednesday 27 May 2015

जाने कब से एक ही काम दोहराए जा रहा हूँ



जाने कब से एक ही काम दोहराए जा रहा हूँ
कोशिशों से डुबकी लगा मोती निकालता हूँ
मुठी में दबा कुशल तैर बाहर आता हूँ, और ज्यु
देखता हूँ खोल मुठी को , दिखाना चाहता हूँ
सबको उपलब्धियां गिनाना चाहता हूँ, त्यु
वो सरक जाता है दोबारा उन्ही गहराइयों में
.
और फिर मैं कूद पड़ता हूँ एक बार फिर
उन्हीं गहराइयों में , एक बार फिर बेताल जैसा
उस मोती को दोबारा बाहर लाने के लिए
जाने कब से एक ही काम दोहराए जा रहा हूँ
नाम बदले ! रूप बदले ! सदियाँ बदली ! पर काम
नहीं बदला आज भी वो ही काम किये जा रहा हूँ मैं

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