फुर्सत के है चहचहाने, मौजों से बंधे किनारे है
वख्त कहाँ ! आदिअंतहीन का आद्यान्त खोजें
.
शाश्वत आदि अंत किसने देखा लिखा गाया है
किस्से सामायिक चंद बंधे टुकड़ों की दास्ताँ है
.
फिर भी मन तू बेचैन है , कुछ कहने सुनने को
आज इस पल में घटती घटनाएँ कल की कथा
.
कथाओं के किस्से किस्सों से परिवर्तित गाथाएं
गाथाओं का बनता अमिट इतिहास जलतरंग पे
.
हम पलट रहे गाथाओं के ऐतिहासिक पन्नो को
जलतरंग जिसको देती स्वर कल-कल चल-चल
.
नासमझ समझ बहते समय की ये धार-दुधारी है
इसपे बहना तेरी किस्मत सँभलना जिम्मेदारी है
.
Om Pranam
No comments:
Post a Comment