कुछ गिरते रंगते, कुछ अनायास उभर आते
भिगोते सभी रंग दिखाई तो नहीं देते
ये भी द्वैत तो कुछ अद्वैत होते है
इन रंगो में ज़रा फर्क तासीर का भी नहीं होता
रंग तत्व पे गिरते है तो कुछ अ+रंग
चैतन्य पे छिटक कर उभरते है
फर्क! तत्व पे गिरा उसे तत्व ही देख पायेगा
चैतन्य पे गिर अदृश्य तरंग था होवेगा
उफ़ ! रंग भी द्वित्व में दो मिले
प्रकाश किरण बिखरी कण कण शुभ्र उजला
दूजी छुइ मन सरोवर निखरा निखरा
किरण भी द्वित्व में बंटी मिली
इक अनोखा कमल मिला अन्तस्मन में
अप्रतिम सौन्दय युक्त अद्वितीय
व्यापारों ख्वाहिशों से बेख़ौफ़
इक वो था,जो दो हांथों बीच कैद सुंदर पुष्प
दोनों के हांथो में वो सुगंध दे गुजर गया
द्विअर्थी पुष्प भी मिल गया
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