Friday 22 May 2015

शब्द जाल



शब्द जाल , संरचना से उभरते  शब्द समूह
शब्द जन्म संयोग कंठ आघात वायु अग्नि

मस्तिष्क दौड़, माध्यम  सुनने  सुनाने का
शुद्ध ऊर्जा पुंज  जो निर्मित अग्नि वायु से

स्वयं कहते सुनते जाल बुनते मकड़ी जैसा
आरम्भ खुला व्योम सा, बंद मध्यबिंदुअंत 

अपने ही पीछे  छूटते  तारों में जा उलझता
जीव  अनजाने में अपने ही बनाये जाल में

शुद्धऊर्जा शब्द अपना जाल स्वयं बुनते है 
मकड़ी की तरह मूर्ख मध्य में जाअटकते है

सावधान  उस पहले  शब्द के  इस्तेमाल से
पश्चात जिसमे पश्चाताप ही  मात्र शामिल

शुद्धऊर्जा  के दो ही  स्वरुप  दिखाई  पड़ते
इक जाता सृजन को तो दूसरा विध्वंस को

शब्दों के अर्थ अनर्थ सम्मलित उपयोग में
शब्दपथ गमन हो चिंतन स्वाध्याय मनन

ऊर्जा  शुद्धतम " स्व "  स्व अर्थ फलदायी
स्व पे केंद्रित होता अध्यात्म स्व से जुड़ हो 

चयन उत्तम उपयोग सहयोग युक्त संग्रहण
पूर्ण कल्याण जीव कल्याण  लोक कल्याण 

No comments:

Post a Comment