नानी से कथा सुनी थी , बचपन में !
बिल्कुल ठीक नींद में जाने से पहले
अँधेरी रात में , टिमटिम तारों नीचे
कान के पास फुस्फुसाती थी धीरे से
अपनी समझ औ फोटो पे फिट जब
आत्मज्ञानी प्रसिद्द लोग माला चढ़े
देखे,याद आया किस तरह औ कौन
संतुलन की बात करती थी , हौले से
.
कथाएं समझाती मध्य राह की लौ
मध्य वो नहीं, जो अतिरेक में दिखे
न तो ज्ञानी मध्य में , न ही अज्ञानी
इस / उस पार जो मौन संवाद करा दे
निबाहे दो धर्म ख़ुशी से जो , बिटिया !
.
दुस्तर वो कठिनतम मध्य-मार्ग है
भक्ति औ शक्ति संगम मध्य-धार
धर्म भी न टूटे , अस्तित्व भी न छूटे
भव सागर तैरा वो ही, इस जीवन से-
उस जीवन तक जिसने हार न मानी
.
संसार सुख भोग , तो दुःख भी भोग
भोग को भोग ; जो जीवित कमल सा
अपने योग्य जल से, अपने गड्डे भर
पवित्रसरवर ! कमलदलपुष्प खिलता
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