Saturday, 9 May 2015

उम्र का अनुभव



नानी से कथा सुनी थी , बचपन में !
बिल्कुल ठीक नींद में जाने से पहले 
अँधेरी रात में , टिमटिम तारों नीचे 
कान के पास फुस्फुसाती थी धीरे से 
अपनी समझ औ  फोटो पे फिट जब 
आत्मज्ञानी प्रसिद्द लोग माला चढ़े 
देखे,याद आया किस  तरह औ कौन
संतुलन की  बात करती थी , हौले से
.
कथाएं समझाती  मध्य राह की लौ 
मध्य वो नहीं, जो  अतिरेक में दिखे 
न तो ज्ञानी  मध्य में , न ही अज्ञानी 
इस / उस पार जो मौन संवाद करा दे 
निबाहे दो धर्म ख़ुशी से जो , बिटिया !
.
दुस्तर  वो  कठिनतम मध्य-मार्ग है
भक्ति औ शक्ति  संगम  मध्य-धार 
धर्म भी न टूटे , अस्तित्व भी न छूटे  
भव सागर तैरा वो ही, इस जीवन से- 
उस जीवन तक जिसने हार न मानी 
.
संसार सुख  भोग , तो दुःख भी भोग 
भोग को भोग ; जो जीवित कमल सा 
अपने योग्य जल से, अपने गड्डे भर 
पवित्रसरवर ! कमलदलपुष्प खिलता

No comments:

Post a Comment