पढूं तो तेरा लिखा बढ़ता ही जाता
लिखूं तो तेरी स्याहीअनंत विस्तार
देखूं तो अंत हीन सत्ता तेरी ही पाउँ
प्रकर्ति लास्य से भयभीत आँखेंमूँद
सुनु तो चुपके से कह जाते खुद को
तुम कैसे ! ऐसा गीत.. गाते चलते !!
बोल अबोल व्यर्थ के बोलू कबतक
मौन होऊँ ज्यूँ शब्दों को जाना नहीं
चंचल न बेचैन हो इन बोलो वास्ते
माया सम्बन्ध-बंध समूह-मोह छूटे
वैभव भान गान कवि कंठ में जागे
तुम कैसे ! ऐसा गीत.. गाते चलते !!
किसकी माया ! कैसा ज्ञान सम्मान
तूतूमैंमैं किससे ! लेनादेना किसको !
इसकी कह उससे ले उसकी दे इसको
ज्ञान-मान-तन्द्रा बुने जाल बड़ागहरा
ज्ञान सुध जाये कविभक्त गान फूटे
तुम कैसे ! ऐसा गीत.. गाते चलते !!
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