माना नहीं , समझा नहीं
उतरा है चाँद का अक्स
शांतझील में ज्यूँ नूर तेरा
रुपहला हो बिखर गया ,
.
तेरे बन्दों से बंदगी दोस्ती
शुक्रिया अपनी दास्ताँ से
भावपरिचयरूप देते सभी
कवितायेँ नहीं, कवि भाव
लेख नहीं लेखक पढ़ डाले
.
ज्ञान नहीं ज्ञानी को जाना
ऋचा नहीं,ऋचाकार मिले
उनकी कलम की नोंक पे
लिखने वाले के भाव मिले
.
न किसी के कहे जैसे तुम
न ही मशहूरियतमुताबिक
दीदार का शुक्रिया ऐ दोस्त
फकत सादी सी थी कोशिश
नतीजा तुम भी हूबहू मिले
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