Sunday 24 May 2015

तुम भी हूबहू मिले


मैंने  जाना  प्रियतम तुझे
माना  नहीं , समझा नहीं
उतरा  है  चाँद  का अक्स  
शांतझील में ज्यूँ नूर तेरा  
रुपहला  हो  बिखर  गया  ,
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तेरे बन्दों से बंदगी दोस्ती 
शुक्रिया अपनी  दास्ताँ से 
भावपरिचयरूप देते सभी  
कवितायेँ नहीं, कवि भाव  
लेख नहीं लेखक पढ़ डाले  

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ज्ञान नहीं ज्ञानी को जाना 
ऋचा नहीं,ऋचाकार मिले
उनकी कलम  की नोंक  पे 
बैठ रौशनाई पीछे पन्ने पे 
लिखने वाले के भाव मिले  
.
न किसी  के कहे जैसे तुम 
न ही मशहूरियतमुताबिक  
दीदार का शुक्रिया ऐ दोस्त 
फकत सादी सी थी कोशिश 
नतीजा तुम भी हूबहू मिले 






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