Tuesday 19 May 2015

इंद्रधनुषी रंग

एक अनुभव एकात्म का 
कभी  सोच के  देखना !!

खिले फुहारों  बीच आस्मां से उतरे रंग 
अकस्मात् ख़ुशी का उपहार दे जाते  है , 
छोटे से मन के  सुखद पुलक अहसास  
आखिरकार क्यूँ कर  ऐसा संभव  हुआ , 

कभी सोच के देखना  !!

झीलों में तैरते रंगीन कमल दल खिले 
 कितना  प्रसन्न करते है अंतरमन  को 
खिले  सुवासित रंगीन फूलों के बगीचे  
सुखभाव दर्श के पीछे छिपा एक ही रंग 

कभी सोच के  देखना !! 

कहीं उनका वास उस जगत में तो नहीं  !
आप-हम जैसे ये भी परदेसी है आये हुए 
धरती में मिले हमसंग द्वैतअद्वैत बन 
सूरज डोली, चन्द्र हिंडोला इनकी सवारी 
 या  इनसे भी दूर नक्षत्रो से चलके है आते  

 कभी सोच के देखना !!  

 नानी  दादी की कथाओं में  बस्ते  ये रंग 
परीदेश से चलके आते चमकीले चटकीले 
कैसा परी देश ! कैसी चमक ! प्रकाश कैसा 
कैसी स्वप्निल बालकथा इनका  मर्म कहाँ !  

कभी  सोच के  देखना  ! 



रंग का पवित्रतम स्वरूप
इंद्रधनुष में जैसे सिमट आया 
मेरी तरह ये भी प्रियतम को स्पर्श कर आये है 

मेहमान है मेरी तरह ये भी 
परियों की तरह नृत्य करते डोलते फिरते 
उड़ जायेंगे ये  मेरी ही तरह  प्रियतम के पास 

लाखोंवर्ष दूरस्थ से दीप्तकिरण 
स:यात्री बन चलते ये भी जिनके संग 
छिप बैठे उनमे चतुर सुजान रंग भाव तरंग बन 


निश्चित बनी सवारी इनकी 
चन्द्र और सूरज किरण के रथों की 
स्विप्निल आँखों में आ उतरे स्वप्न बन ये रंग 

भारी हो  गिर पड़े  धरती पे 
इधर उधर  फूल बन बिखरे वादियों में 
मानो  धरती संग  होली  खेल के ही जायेंगे 

जहाँ गिरे  वहां अपनी छाप दे 
उड़े जो आस्मां को सात रंग में रंग गए  
कहीं इकठा हुए वाष्पकण धनुष बन तन गए 

देखा देखि उन्होंने भी रंग बनाये है
वेही सप्तरंग वे ही कृत्रिम खेल कृत्रिम भाव 
माया निर्मित गढ़े, प्रिय सम कहाँ निर्दोष मिले 



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