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खूंटी पे टंगी सर्प सदृश ये रस्सियाँ है
सलीके से अटकी हुई सुलझी भासती
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माना बुनावदार का नुस्ख गुनहगार
तो गरीब क्या रस्सी बनाना छोड़ दें!
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ये गांठे भी अनूठे जोड़ बना जाती है ;
परतें न खोलिए , अब जाने भी दीजे
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जरा ताज़ा पड़ी गाँठ को ढीला कीजे
सुलझी रस्सी ताउम्र तुझे दुआ देगी
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ढीली थी बीच से सुलझ गयी शायद
इनके छोरों से इन्हे न टटोला कीजे !
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