वो ही जाने! जिसकी ये अद्भुत माया ,
दर्पण कहे तू-मैं एक भेद न कोई दूजा !
(भाव स्त्रीरूप ,कर्म बुद्धि पुरुष+पुरुषार्थरूप)
योगिनी संग जुड़ ह्रदय में ठहरता वो योगी
जिसकी तू योग माया !
.
स्वपुरूष से मिल बनती इंद्राणी भोगी की
बनी तू भोग माया !
.
मोहनीरूप लालायित मोही का मोह बनती
नूतन तू मोह माया !
.
ह्रदय में बसती तो बुद्धि का कुरुक्षेत्र बनती
कैसी तू ठगनी माया !
जिसकी तू योग माया !
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स्वपुरूष से मिल बनती इंद्राणी भोगी की
बनी तू भोग माया !
.
मोहनीरूप लालायित मोही का मोह बनती
नूतन तू मोह माया !
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ह्रदय में बसती तो बुद्धि का कुरुक्षेत्र बनती
कैसी तू ठगनी माया !
lata
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माया महा ठगनी हम जानी
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले माधुरी बानी
केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी
पंडा के मूरत वे बैठी तीरथ में भई पानी
योगी के योगिन वे बैठी राजा के घर रानी
कहु के हिरा वे बैठी कहु के कौड़ी कानी
भक्तन के भक्तिन वह बैठी ब्रह्मा के ब्राह्मणी
कहे कबीर सुनो भाई साधो यह सब अकथ कहानी
-कबीरदास
काहे री नलिनी तू कुमिलानी ।
तेरे ही नालि सरोवर पानीं ॥
जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास ।
ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि ॥
कहे ‘कबीर’ जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान ।
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माया महा ठगनी हम जानी
तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले माधुरी बानी
केसव के कमला वे बैठी शिव के भवन भवानी
पंडा के मूरत वे बैठी तीरथ में भई पानी
योगी के योगिन वे बैठी राजा के घर रानी
कहु के हिरा वे बैठी कहु के कौड़ी कानी
भक्तन के भक्तिन वह बैठी ब्रह्मा के ब्राह्मणी
कहे कबीर सुनो भाई साधो यह सब अकथ कहानी
-कबीरदास
काहे री नलिनी तू कुमिलानी ।
तेरे ही नालि सरोवर पानीं ॥
जल में उतपति जल में बास, जल में नलिनी तोर निवास ।
ना तलि तपति न ऊपरि आगि, तोर हेतु कहु कासनि लागि ॥
कहे ‘कबीर’ जे उदकि समान, ते नहिं मुए हमारे जान ।
-कबीरदास
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