Monday 20 April 2015

इक इक मोती चुन जोड़


इश्क  मुश्क  आज़माता है
रहम  का  नूर  बरसाता  है
रहनुमाई  के इशारे देता है 
कर्ताधर्ता वो , सोचता   तू   
दातार वो  , मांगनवार  तू  
ये   भी  तो   नाइंसाफी  है 
.
तनिक सोच उसकी तरफ 
उसका राज्य कैसा है,  वो-
राजा कैसा है , तेरा प्यारा 
कैसा ! प्रीतमभाव कैसा है
कब ! क्यों ! कितना देता !
या तू सिर्फ भिखमंगा जो 
अल्लाह के दरवाजे  खड़ा 
कहता  रहता रटंत  तोता 
जो किया "मैं"-ने, वापिस 
अल्लाह के  नाम पे दे दे !!
.
गर वो  प्रियतम तू प्रेयसि 
तो   बैठ  उसके  ह्रदय  में !
उसके भाव में, व्यव्हार में 
उसकी ताल के  साथ ताल 
मिला, नृत्य कर, गीत गा
संगीत  उभरेगा  स्वयं  ही 
बोल  समस्त  खो  जायेंगे 
तू औ प्रियतम का आगोश 
अद्भुत  मिलन  समागम
ऊपर अम्बर न नीचे जमीं !!
.
रुको ! तनिक  ठहरो ! यहीं !
अर्थ व्यर्थ अनर्थ  न करना 
यूँ  उत्तम  स्वप्न  न देखना 
कर्म धर्म भाव हो  दिन रैन
सूफी का कलाम बन जा,तू 
बन जा मोती प्रेम नयन का
पहले मीरा का राग बन जा 
भावनाओं का तार  बन जा 
युग्म अनुभूति हो परम से !
प्रथमभाव विराट तू बनजा  
प्रियतम योग्य तो  बन जा 
कृति स्वीकृत आभारी बन 
अस्तित्वगत क्षुद्र तो होजा
फिर बस चकोर तू  बन जा 
.
अभी  तो  तू  स्वयं  खंडित
तेरा    रेशा    रेशा   खंडित 
तेरा   भाव  गृह  ह्रदय  की 
आस्था.................खंडित 
जिसमे  बसता  रोम रोम 
शरीर.................. खंडित 
जहाँ तूने  जन्म  है लिया 
धरती  खंड खंड  है खंडित 
जिससे रटता मन्त्र सतत 
तेरी वो  माला  भी खंडित 
इक इक  मोती चुन जोड़ 
पहले सुन्दर माला पिरो 
और बोल प्रेम से, 
अब क्या बोलू ! 
आभारी हूँ ! 
कृतज्ञ हूँ ! 
मूढ़ हूँ !
न प्रश्न शेष  
न संशय 
न ही शेष इक्छा 
अब न कोई नियम !
न मर्यादा ! 
तेरे वास्ते !
प्रिय ! 
तू ..
स्वीकृत ...
हर ...
हाल ...
में ..........और पूर्ण विराम।  

Om Om Om

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