Sunday, 19 April 2015

टूटे बिखरे मिटटी के खिलौने



बेख़ौफ़ लहरे भी अंजाम से
वाकिफ, किनारे से टकरा
चूमती और बिखर जाती है 
बस यूँ ही अनवरत बहती 
अविरल 
अनगिनत
असीमित वेदनाएं !!

क्रीड़ाएं पलमें तल,है बेतल 
सब कुछ जानते हुए भी मै 
अपना घर बना जलनिधि-
किनारे पे खड़े देखती खेल     
मुग्धा
अपलक 
अनिमेष निर्दोष दृष्टि !!
.
ज्ञानयुक्त प्रलोभित मोहमाया
कीचड़ से सने गंभीर आश्वासन
स्वांस स्वांस पे सरक फिसलते 
जीने के बहाने, दिल के ठिकाने
लालसाएं
वासनाएं 
हाय अभिलाषाएं !!
.
लोग भी कैसे सिरफिरे होते है 
लहरो पे ही खेल खेलते रहते है 
उस पल जन्मे इस पल मिटते 
टूटे बिखरे मिटटी  के  खिलौने    
आश्वस्त 
संदिग्ध 
प्रमत्त पूर्व नियत मृत !!

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