Friday 3 April 2015

यूँ सफर अपना पूरा करते गए



शम्मा जलती रही
वख्त गुजरता रहा
लौ थरथराती रही
कुछ पिघलता रहा
और सुलगता रहा
नैन नम होते गए
रौशनी और रौशन होती गयी
.
सुबह होती रही
शाम ढलती रही
वख्त बहता रहा
सूरज उगता रहा
चाँद चमकता रहा
इक सोना पहनाता
दूजा चांदी से नहलाता गया
.
तारे टिमटिमाते रहे
इशारा वो देता रहा
खामोश देखते रहे
पल पल बिना रुके
वो जाम भरता रहा
घूंट - घूंट पीते गए
यूँ जीते गए , मुस्कराते गए
.
हम मुस्कराये ही बस
वो खिलखिलाता गया
कागज की इक कश्ती
समंदर में डोलती रही
वजूद "पंख" होता रहा
सब रंग सुर्ख होते रहे
यूँ सफर अपना पूरा करते गए

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