Sunday 19 April 2015

जड़-चेतन


चेतनाएं बहती निरंतर कालांतर में  
जड़तत्व कालातीत ठहरे थामे जमे 

ऊर्जा सततप्रवाहित सनातन स्वतः  
जड़ से संयोग जन्मकाल कहलाता 

समयातीत ऊर्जा अंश है कर्म युक्त 
विचार युक्त आभा सयुक्त जीवित  

विरोधाभासी जड़ थमने को आतुर 
गिरने को उत्सुक हैरां बिखरने को 

मेरे अपने अंदर समाये तीनो जहाँ 
एक ऊपर को उठता, दूजा खींचता 

एक विजय ध्वज फहरा गर्व करता  
दूजा सदैव मरणशीलता घोष कर्ता  

एक जो पल पल तिल तिल मारता 
एक जो जीवन देता श्वांस श्वांस में 

अपने अंदर सूर्य चंद्र दोनों का वास 
एक समर्पि मृत एक ओजस तापस 

तीसरा बसता दोनों के ऊपर रहता  
कृष्ण सारथी सम कर्म संग्रह कर्ता 

सत्वि-राजसी-तामसी त्रिगुणरूप मै 
सात्वि ! इन्हे संतुलन करता चलता  

सर्वबंधन मुक्त स्वार्थीकर्मभोगी मै  
असीमित शुद्धबुद्ध साक्षी कहाता

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