बहती हवाओं में उड़ा पक्षी बन
कभी उसी के डैनों में जा गिरा
मौसमी पकते कपासी खेतों के
उड़ते धागों में गुथ के रेशा हुआ
.
कभी नदी कभी पर्वत जा पहुंचा
कभी खायी कभी चोटी पे टिका
व्योम की ऊँची छलांग लेते हुए
कभी सूर्य से छिटकती गर्म धूप
कभी चन्द्रमा की चन्द्रिका हुआ
.
बीज बन जा बैठा गर्भस्थली में
तो कभी मर्मस्थली में जा छिप
रक्त बन मिल शिराओं में बहा
सत्यार्थ पीछे भगता हुआ योगी
कभी अँधा कभी दृष्टिवान हुआ
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