Friday, 3 April 2015

धागों में गुथ रेशा हुआ


जल में कूद तैरता मछली बना 
बहती हवाओं में उड़ा पक्षी बन
कभी उसी के डैनों में जा गिरा 
मौसमी पकते कपासी खेतों के
उड़ते धागों में गुथ के रेशा हुआ 
.
कभी नदी कभी पर्वत जा पहुंचा 
कभी खायी कभी चोटी पे टिका 
व्योम की ऊँची छलांग लेते हुए 
कभी सूर्य से छिटकती गर्म धूप 
कभी चन्द्रमा की चन्द्रिका हुआ  
.
बीज बन जा बैठा गर्भस्थली में 
तो कभी मर्मस्थली में जा छिप 
रक्त बन मिल शिराओं में बहा
सत्यार्थ पीछे भगता हुआ योगी 
कभी अँधा कभी दृष्टिवान हुआ

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