नजर भर इकबार खुदको देखा
बे-इंतिहा खुद को जी भर देखा
इस पार उस पार खुद को देखा !
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वो ही झिलमिलाता अर्श देखा
इस केंद्र से उस केंद्र से जुड़ के
उड़ानों में उड़ान का रेशा देखा !
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गहराइयों में गहराई से मिलके
कण कण में मिश्रित ओजवान
सूरज "जर्रा" सा चमकता देखा !
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टूटे तारे सा गुम हुआ वो द्वैत
सत्य एकात्म आत्मसात हुआ
न मैं था न तू , फिर क्या देखा !
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