Sunday, 19 April 2015

अंश -2


१-
सच  झूठ  के दरमियान बस इतना ही फ़ासला है 
इक  इधर औ इक उधर खड़ा, बीच में पर्दा पड़ा है  
*
२-
जब मौन साथ होता है तो शब्द साथ छोड़ देते है 
जब शब्द का दामां थामा तो, मौन चला जाता है 
*
३-
उस इक पल का बयान क्या कीजे,अब चुप रहिये 
मौन में वो सब सुनता है जो शब्द बयां नहीं करते
*
४-
तैरना है तो तैरिए गहराई का भी अनुभव लीजिये 
किनारो से न लहरो के हुनर का मुआइना कीजिये
*
५-
१ से २ , २ से हुए १, फिर ११ क्यूँ ! कैसा गणित है
कर सकते थे हल चुटकी में तो इतनी मेहनत क्यूँ !
*
६-
पर्दे के इधर खेल पर्दे के उधर मेल, उफ़ ! ये कैसी 
साजिश पटकथा के गुंथन की, दिमागी खलिश है !
*
७-
रूहों के सम्बन्ध; ख़ाक के इधर भी उधर भी जुड़ें है 
खिंचाव की शक्ल में बयां होती ये रवायत रूहानी है

No comments:

Post a Comment