आह्वान अद्वैत का
आओ ! तरंगो से सजें हम
लहरें खेलें अठखेलियां
नैया पे बैठे डोलें हम............
.
आओ ! नदिया से रहें हम
बूंदों में मिल चंचल से
विद्युत बन बहे हम.............
.
आओ ! बौछारों में बसें हम
बहतेबहते धारा बन पुनः
सागर से जा मिले हम...........
.
आओ ! स्वपहचान बने हम
आह्वान द्वित्व-खडिंत
अद्वैतरथ पे सवार हम ...........
No comments:
Post a Comment