Friday, 3 April 2015

सूर्यमुखी "वो "


कब हुई भोर और साँझ हो गयी 
बिन मेघ के निर्झरवृष्टि हो गयी
कह-सुन वो मौन हो गयी, आनंद मंगल धार हो गयी !
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बीज से कोमल सूर्य मुखी खिल 
पुनः बीजों की स्वामिनी हो गयी 
सूर्यकिरण के पड़ते ही वो, प्रेमालिंगन योग्य हो गयी !
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आतीजाती श्वांस संग समर्पित 
अर्पित होती कब गिरी भूमि पे 
सम्भावना बीज फैलाती, कब प्रिय रंग ; संग हो गयी !
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नव जन्मित कब करवट बदलती 
मृदु धरती कब परिपक्व हो गयी 
चेतन ऊर्जा शक्ति ऊर्ध्वमुख देहभार से मुक्त हो गयी !

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