Sunday 12 April 2015

किताब-ए-जिंदगी




कहाँ पहुंचेंगे या के अंधेरो में कब तलक यूँ  भटकेंगे
ये नुक्ते कुछ अजीब है, लिखे काफ़िये भी अजीब है
.
गीत गाती कभी गुनगुनाती ओ गुदगुदाती जाती है
खुशनुमा महकती बगिया बला की रौशनी बिखेरती
.
तो कभी मद्धिम जुगनू सी टिमटिम करती जाती है
ये जो जिंदगी का साज़ है इसके अपने ही सुरताल है
.
इसके साज़ जुदाजुदा उनकी बंदिशआलाप जुदाजुदा
लिखे बोलो के सुरों पे बजते साज खुद नृत्य करते है
.
यहाँ रहते सभी दर्शक कलाकार औ नर्तक कहलाते है
सलीबों में बंधे नसीबो की दास्ताने जुदा जुदा होती है
.
कभी दोस्त कभी रकीब कभी हमनशीं कभी अदीब है
किताब-ए-जिंदगी कोरे से शुरु , कोरे पे ख़त्म होती है

Om Pranam

*सलीब- Burden on back
*नसीब- Destiny / Luck
*रकीब - Rival
*हमनशीं - Beloved / lover
*अदीब - Scholar / Soul urge spiritually

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