कहाँ पहुंचेंगे या के अंधेरो में कब तलक यूँ भटकेंगे
ये नुक्ते कुछ अजीब है, लिखे काफ़िये भी अजीब है
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गीत गाती कभी गुनगुनाती ओ गुदगुदाती जाती है
खुशनुमा महकती बगिया बला की रौशनी बिखेरती
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तो कभी मद्धिम जुगनू सी टिमटिम करती जाती है
ये जो जिंदगी का साज़ है इसके अपने ही सुरताल है
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इसके साज़ जुदाजुदा उनकी बंदिशआलाप जुदाजुदा
लिखे बोलो के सुरों पे बजते साज खुद नृत्य करते है
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यहाँ रहते सभी दर्शक कलाकार औ नर्तक कहलाते है
सलीबों में बंधे नसीबो की दास्ताने जुदा जुदा होती है
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कभी दोस्त कभी रकीब कभी हमनशीं कभी अदीब है
किताब-ए-जिंदगी कोरे से शुरु , कोरे पे ख़त्म होती है
Om Pranam
*सलीब- Burden on back
*नसीब- Destiny / Luck
*रकीब - Rival
*हमनशीं - Beloved / lover
*अदीब - Scholar / Soul urge spiritually
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