एकलयता प्रकृति की
धरती ही नहीं कांपती
समंदर भी थरथराता
पर्वत के कम्पन से
बर्फीले तूफान
गड़-तड़-गड़
का राग गाते है !
इतना ही नहीं
तड़ित चमकार
आंधी तूफान
आसमानी विष
पानी बन बरसता
ज्वालामुखी फूटते
दहकते अंगारे
पिघलते और बहते है !
पँचतत्व अस्तव्यस्त
योजनाबद्ध
बल प्रदर्शन में
प्रलयकाल आरम्भ हुआ
अपने अस्तित्व को
भूलने की सजा
हम तुम ही नहीं
समूची कायनात पाती है
सुलझे से इशारे है .....
और अध्यात्म भी क्या है !
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धरती पे पड़ी थी जो
जीवित-चेतन-मिटटी
क्षण में धूल-धूसरित
पुनः मिटटी में मिली
धरती एकपल नहीं लेती
वर्षो सहेजे मनुष्य इतिहास
विज्ञानं और कला, धर्म
को समेटने में
कला पानी पे बहते रंग
वैसे इतिहास भी क्या है
पल में उजड़े समूचे
कस्बों के अवशेष
चर्च, मंदिर, मस्जिद के
कलात्मक शेष अवशेष
मेमोरिएल युद्धों के !
पुष्प अर्पित शहीद स्मारक
शहीद होने के लिए
खाली पड़ी सीमाएं
या धरती पे खींची लकीरे !
इतिहास तुम्हारा
मरणोपरांत अश्रु लिए
पुरस्कार लेते परिवार
ओजोन को भेदते
विज्ञानं के रॉकेट बाण
और नक्षत्र भेदन करते
प्रमाण रहस्य खोजते
एक एक कदम बढ़ाते
मानवीय हौसले ......
सुलझे से इशारे है .......
और उचित आचार क्या है !
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राम रावण युद्ध
महाभारत कथा
कृष्ण की कुशलता
चाणक्य का व्यव्हार
सम्राट के इतिहास
राजनैतिक षड्यंत्र
प्रथम द्वितीय तृतीय
युद्ध के समेटे बचे टुकड़े
बनाते इमारती दस्तावेज
कहते है संग्रहालय दास्ताँ
हिरोशिमा की कहानी
अपने ही विकास को नष्ट करती
मनुष्यों की योजनाएं
जीने के तरीके सिखाती
धार्मिक योजनाये
योजनाबद्ध स्वयं के वध
में परिवर्तित होती
सुलझे से इशारे है ....
और इतिहास भी क्या है !