जिंदगी का नशा तो शराब से भी गहरा है और मदहोशी : पता नहीं कब और कैसे टूटेगी !
इतिहास के पन्ने फिर से फड़फड़ाते है
मानो अपने होने का अहसास एकबार फिर देजाते है
वो फिर से कहानी जवान होती है
वो आवाजें गूंजती फिर वो ही दास्ताँ सुनाई देती है
कहती है ग़ाफ़िल गाफिलियत छोड़ दे
योगी ज्ञानी भोगी राजा अपना समय जिए ; चले गए
टुकड़ों में बंटा कुछ वर्षो में फैला
मानव जीवन इतिहास यूँ तो करोड़ों वर्षों पुराना है
तुम्हारा जीवन सिमित उतना ही है
युवादेह में खेलती साँसे वृध्ह की बीमारी न सह पाएंगी
यहाँ कितना भोग पायेगा ! नशा छोडो !
ये कैसी मदहोशी है देखो जरा मौत भी दस्तक देती है
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