Monday 8 December 2014

प्रज्ञावान मौन




यहाँ वहां बंटा बिखरा 
कितना सच  बाकी है 
आधेसच कहतेसुनते 
थकते नहीं ये  भागते 
मनबुद्धिजिव्हा क्या 
दो विश्राम,ठहरो यहीं 
इसी दिन पल घडी में 
आज अभी से यहीं से


दण्डित हो मौन भंग  
दो शब्दों के जोड़संग 
अनंत कर्मबन्धयोग 
यानि बुद्धि का तोड़  
बुद्धि  तरंग  विचार 
विचार  यानि  ध्वनि  
शब्द  युग्म के प्रदान 
से  होता  आदान शुरू 


जैसे शांत  झील  में  
कंकड़  का गिरते ही 
लहरे अनवरतबहती 
जब  तलक   दोबारा
झील पूर्ण शांत नहो   .

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