कौन..किसको सम्भाले ! क्यों..कब संभाले के बीच !
डगमग कदमो के निशां बनाते चल सको तो मिलो !!
खुद नशे में इस कदर चूर साथी , कदम डगमगाते है !
तुम अगर हाथ पकड़ ऐसे ही साथ चल सको तो चलो !!
वायदा कुछ कर भी लूँ , तो ऐतबार मत करना क्यूंकि
वायदों की मजबूत बुनियाद समंदर के ऊपर रक्खी है !
रुकना चाहूँ तुम्हारे साथ को अपना हाथ भी बढ़ा दू पर
लहरों बेमानी है ,इस भरोसे पे साथ चल सको तो चलो !
गजब देखी , समंदर में उतराती सतरंगी तश्तरी जैसी
मध्य "बिंदु" बना दोनों छोर पे कदम जमालो तो चलो !
नशा द्वित्व में है जो हम तुम में , अद्वैतव में वो ही
तुम जिससे औ जैसे लिपट आगे बढ़ सको , तो चलो !
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