Wednesday 17 December 2014

नशा




कौन..किसको सम्भाले !  क्यों..कब संभाले के बीच !

डगमग कदमो के निशां बनाते  चल सको तो मिलो !!


खुद  नशे में इस कदर चूर साथी , कदम डगमगाते है !

तुम अगर हाथ पकड़ ऐसे ही साथ चल सको तो चलो !!



वायदा कुछ कर भी लूँ , तो ऐतबार मत करना क्यूंकि 


वायदों की मजबूत बुनियाद समंदर के ऊपर रक्खी है !



रुकना चाहूँ तुम्हारे सा
थ को अपना हाथ भी बढ़ा दू पर


लहरों बेमानी है ,इस भरोसे पे साथ चल सको तो चलो !



गजब देखी , समंदर में उतराती सतरंगी तश्तरी जैसी


मध्य "बिंदु" बना दोनों छोर पे कदम जमालो तो चलो !



नशा  द्वित्व में है जो हम तुम में , अद्वैतव में वो ही 

तुम  जिससे औ जैसे लिपट आगे बढ़ सको , तो चलो !

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