Wednesday 3 December 2014

तीन स्तर में फैला माया का प्रथम साम्राज्य विशाल

-: कविता की पृष्ठभूमि :- 

        संकेतो की इस दुनिया में संकेत ही संकेत मिलते है की कविता में  प्रश्न भी संकेत है , किन्तु स्पष्ट करना चाहती हूँ की ' समस्त कविता प्रश्न नहीं वरन एक पूर्ण उत्तर है ' ,  माया की गहराई खंगालने में ये स्वयं प्रश्न बन के उभरी है , यहाँ सिर्फ मनुष्य को उसी की स्थति पुनः बताने की चेष्टा है , कैसे सभी जीव अपने अपने जीवन में अपने अपने नियत स्थान में रहते हुए संघर्षयुक्त है ,

        ये तो माया की पृथ्वी पे सबसे पहली पर्त है जो तीन भागों में बंटी है .. वायु जल और थल जीव जगत कथा का तो हम सभी जानते है किन्तु यहाँ जल जीवन का उदाहरण-वर्णन है जो थल के समान ही कठनाईयों और संघर्षों से भरा है मनुष्य का झूठा दम्भ की वो अकेला बुद्धिजीवी है अकेला पृथ्वी का मालिक है किन्तुं विचारणीय ये है की  मनुष्य में ऐसा क्या खास दिया है अकारण परमात्मा ने सिर्फ ब्रह्माण्ड का प्रकटीकरण किया किन्तु  इसमें जो इंसान की रचना  वो अकारण नहीं परमात्मा ने जो सकारण है मानव की रचना और विकास  की प्रेरणा दी किन्तु माया से रंग के  कर्त्तव्य हमने भुला हुआ ! ( यदि प्रश्न है तो समस्त प्रश्न अंतर मंथन के लिए , की शायद इस समुद्र-मंथन से वो सत्य याद आ जाये ) शुक्रिया मेरे दोस्त Shivputra Chaitanya का जिन्होने इस कविता के अधूरेपन की तरफ संकेत किया और भूमिका में लिख के इस भाव को अधिक  स्पष्ट  कर रही हूँ , 

पुनः शुक्रिया , आभार।  प्रणाम।  



तीन स्तर  में फैला माया का प्रथम  साम्राज्य विशाल
चलो विहारें आज उस जलचर माया का संसार
ये खेल संसार , यहाँ भी  घेरे जन्म गर्भ
संयोग  और  भाग्य कर्म परिणाम
कर्मयुक्त जीवन जीते यहाँ भी
मौन फल भोग जीते  मरते
जल की अथाह गहराई में 
जीवन निर्धारण करता 
इनका दृष्टा कौन ?


नीला  समुद्र अथाह लहराती लहरें उन्नत सूक्ष्म
विशाल  मंझोले सूक्ष्म जीवों को पोषित करता 
तैरती  छोटी  बड़ी  मछलियाँ मध्य स्तर में ,
उथलायी गहराई में अन्य जीवों का वास 
संघर्ष युक्त सभी यहाँ जीवन  जीते
गहरे उथले का बंटवारा करता
जीवन का सञ्चालनकर्ता 
वो रहस्यमयी कौन ?


जलजन्म स्तर पूर्व नियत,बिन जाने अंजान
अपनी सीमाओं  में तिरते अथाह जल में
उथले , गहरे और अथाह जलस्तर पे
अपना डेरा  बना  परिवार भी बनाते
सीमाओं में ही दीर्घकाल से धैर्य से
मृत्यु का आलिंगन करते जाते 
आखिर वो योगी कौन ?


वो योगी सिखाता सीमाओं का पाठ जो इनको 
बौद्धिक स्तर भी नियत करता जाता
भावपूर्ण  मछलियाँ भी अनमोल 
बुध्ही सौंदर्य की  है स्वामिनी 
हठ क्रोध ईर्षया द्वेष युक्त 
गर्व से इठलाती निरंतर
सीमा में तैरती जाती
निर्देशक वो कौन ?


आह ! अचरज एक भारी कथा पटकथा समान
जीवनकरतब एक समान  जलथल चरअचर
हुए घेरे  द्विगुणित घेरों के असंख्य  फेरे
जलप्राणी  थलप्राणी वायुप्राणी एक
सबमे ही युति  दैत्य देव वृत्ति
अलग क्या है इस मानव में
धुनि रमा  बैठा कौन ? 

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