Monday, 8 December 2014

हंसपंख

श्वेत हंस पे सवार
साँसों..पे ..सारथी
साथी..विष.अमृत  
भरे छलिया उड़ान

नेह डोर बंधी संग 
लाये..यहां..उतार 
पंख उड़ा बार बार 
श्वांसों..का..नर्तन 
श्वांसो..की...ताल 
श्वांसो..का.दीपक 
श्वांसो..का..साज 
श्वांसों..का..थाल 

श्वांस सारथि संग 
छलेगा न अधिक ;
लो ! संज्ञानीज्ञानी 
अज्ञानी  भी  सभी 
श्वांस...डोर...छोड़ 
अकेले...उड़...चले 

श्वेत..हंस..पंख से
ढका नीला आस्मां
इस..आस्मां..ऊपर
भरावो जुगनुओं से  
चमकीले..से..कण 
लगते तो है सितारे 
नहीं नहीं ; हंसपंख

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