यूँ कुछ नहीं हो जाता मुसाफिर
सदियों में फासला तै किया होगा
होश संभाल के वो नूर रौशन है
भावों का जखिड़ा बनने न पाये
भावों के बहाव को जानो,यार !
रिश्ते आंधियों से उखड जायेंगे
खारे सैलाब को बांध न मिलेगा
प्रेम केआंसू भी ढाल नहों पाएंगे
कंधे पे नाहक टंगे इस झोले में
कंकड़ पत्थर में यूँ समय न गवां
बे-मोल सारी कवायतें, ग़ाफ़िल !
शहँशाएशान में तू अकेला काफी
उस के आगे नहीं इनका मोल है
यही छोड़ सब,आगे बढ़ जाना है
Om
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