Thursday, 26 February 2015

युगोंयुगो खेलती पहेली का हल पूर्ण हुआ


आधा दिखता आधा जा छुपता 
आंख मिचौनी का खेल खेलता 
पकड़ा गया, कोने में जो छिपा
कोर में छिप थोड़ा सा झाँकता  
बालक सा खेलता पकड़ा गया 

आधा उलझा आधा वो सुलझा 
आधा था अँधेरा आधा उजाला 
आधा लिपटा आधा था छिटका 
मेरे  जीवन  घेरे को पूर्ण करता 
आधा  प्रकट था आधा अप्रकट 

अप्रकट हो तू ही प्रारब्ध बनता 
प्रकट मेरा कर्म हो प्रेरित करता 
हर कदम को संभाल के रखाता   
मेरे हरपल का तू हिसाब रखता 
आधा  दीखता तू  आधा छुपता 

मेरे  आधे  प्रकट हुए हिस्से  का  
आधा अप्रकट  हिस्सा  तू  ही है  
अप्रकट आधा हिस्सा नक्षत्र हो 
दिव्य रूप से आंदोलित  करता 
आधा प्रकट हो मुझमे जन्म से 
मृत्युतक मुझमेआंदोलितहोता 
तू  ही तो है  मेरे आधे टुकड़े का 
दूसरा  बिछड़ा  वो आधा टुकड़ा
जिससे  जुड़  के घेरा  होता पूरा  









रहस्यमय खजाने की कुंजी सा 
अर्धप्रदर्शित शिवलिंग रूप बन 
निम्न+उर्ध्व खंड के ठीक मध्य
ओजस्वी छिप स्व परिचय देता 
अद्भुत खेल अद्भुत दर्शन तेरा 

मैं जब बढ़ती, तू जर्रा हो जाता 
तू बढ़ता तो मैं जर्रा  बन जाती 
आज मध्यान्ह में एकसाथ हुए  
तूभी जर्रा मैं भी जर्रा,युगों युगो 
खेलती पहेली का हल पूर्ण हुआ 

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