Monday, 2 March 2015

बुद्धिहीन मैं !





उस बुद्धिशील ने पूछा
रे पुष्प, कैसा ये मौन है
क्यूँकर तुझे ये मान है!
किसबात का अभिमान
जो इठलाता मुस्कराता
बिन बात , बिन कारण
सुनता नही कुछ कहता
सुगंध फैलाता जाता यूँ
अद्भुत गुण, अप्रतिम-
सौंदर्य पे इतराता जाता

बुद्धिहीन मैं! फूल हंसा
नहीं शब्द-भेद का ज्ञान
क्या ! क्यों ! कब ! कैसे
न मेरी प्रकति के साथी
प्रकृत जन्मता खिलता
पुनः प्रकति की गोद में
गिर जाता, समां जाता
जब जानता ही नहीं तो
मानूँ क्या ,जानू क्या !
मेरी भाषा कुछ और है
मौन प्रेमगंध भरपूर है

रे बुद्धियुक्त तार्किक!
सुनिश्चित करो रक्खो
गर्व के अनेकों अवसर
अभिमान के अधिकार
वितरण प्रसरण प्रचार
तुम्ही करो ये व्यापार !

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