Monday, 16 February 2015

तु अहसास है मेरा


बार बार दौड़ लगाता तो हूँ, बंधा हुआ अनजान परिधि पे -
फिर थम जाता हूँ लौट के अपने ही बिंदु पे सुस्ता लेता हूँ

शिथिल होचुकी वो जिस्मानि ताकतें कभी जिन्पे नाज था 
शक्ल येके एकएक सांस केलिए तेरा कर्जदार होचला हूँ मैं....

सुना है छुइ-मुई सा नहीं मिलता छूने से कभीभी किसी को 
अहसास है मेरा , और साथ मेरे तू हरवख्त चलता जरूर है

जानता हूँ नहीं मिल सकूंगा खो जाऊँगा अंधेरों में एक दिन 
तुझे पाने के मधुर-प्रणय अहसास से ही तृप्त हो चला हूँ मैं.....

Om Pranam

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