बंद कर इस छोर से उस छोर तक दौड़ चांदी के तार पे
फैले अनंत आस्था के आयामों में ठहर तू रुक जा वहीं
न ढूंढ भुरभुरी रेत में वो आगे बढ़ गए क़दमों के निशाँ
मुसाफिर जी भरके,आज जहाँ जीवन जरा मिले जी ले
टप से पड़े चहरे की तपन पे जो पानी की बूँद छन्न से
उस भाप हुई को,खिले हुए फूलों की नमी में तलाश ले
तपिश में रहते पक्षी कंठ सींचती बूँद को दुआ मान ले
किसी की आख्नो से, टपकते प्रेम के आँसूं में तू देख ले
उसकी उंचाईयों और गहराईयों को न माप ऐ दिलनादाँ
मासूम कोशिशों में, चुटकी भर राख भी न हाथ आएगी
Om
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