गहन गुफाओं में
कठोर साधना से
शरीर साध्य कर
तुझ से जुड़ पाये,
या
घर के अँधेरे में
कम्परहित लौ जला
तुझ से जुड़ अपनी
तरंग नाव खे लेते है
तू तो सबका है ...
गर्दन तराश के जो
रक्त सने टुकड़ों पे
झूमते उत्सव की
खुशिया सजाते है
लोढ़ा हो या नाव
खीरा हो या धार
तू तो सबका है ....
न भर्मा मासूम को
बने बनाये ख़ुदा से
बने बनाये मसीहा
तोड़ स्वनिर्मितजाल
अब बोल भी दो के
वो -"सच" सबका है ...
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