Wednesday 11 February 2015

अब बोल भी दो



गहन   गुफाओं  में 
कठोर  साधना  से 
शरीर  साध्य  कर  
तुझ से  जुड़ पाये, 
या 
घर   के   अँधेरे   में 
कम्परहित लौ जला 
तुझ  से  जुड़ अपनी 
तरंग नाव खे लेते है  
तू  तो सबका  है ...

गर्दन तराश के जो 
रक्त सने टुकड़ों पे
झूमते   उत्सव की 
खुशिया  सजाते है 
लोढ़ा  हो  या नाव 
खीरा  हो  या  धार 
तू  तो सबका है ....

न भर्मा मासूम को  
बने  बनाये ख़ुदा से 
बने  बनाये  मसीहा
तोड़ स्वनिर्मितजाल 
अब  बोल भी दो के
 वो -"सच" सबका है ...


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