*
नन्हा फूल खिल महका सूखा गिर पड़ा
होता खामोश अंधेरो में
लहर उठती जोर से किनारे पे खो जाती
सूफी हँसता," क्यूँ सहमे-सहमे लोग "
*
जिस्म तो जिस्म सभीके राखतत्व है एक
ताकतवर या कमजोर
कत्लेआम करनेवाले मरनेवाले दोनों गए
मस्ता हँसता," कित्ते हैं दीवाने लोग "
*
सूरज-चाँद-सितारे आते जाते बारी-बारी
दिनरात का चलता चक्का
अस्तित्व बनता,जीवन मिटता देखदेख
सूफी हँसता," नाहक हैं परेशां लोग "
*
उसका अट्टहास आज भी गूंज रहा है
खामोश वादियों में
क्यों हँसता था वो ,आज भी सोच में है
जोगी हँसता," कैसे ये दिमागी लोग "
नन्हा फूल खिल महका सूखा गिर पड़ा
होता खामोश अंधेरो में
लहर उठती जोर से किनारे पे खो जाती
सूफी हँसता," क्यूँ सहमे-सहमे लोग "
*
जिस्म तो जिस्म सभीके राखतत्व है एक
ताकतवर या कमजोर
कत्लेआम करनेवाले मरनेवाले दोनों गए
मस्ता हँसता," कित्ते हैं दीवाने लोग "
*
सूरज-चाँद-सितारे आते जाते बारी-बारी
दिनरात का चलता चक्का
अस्तित्व बनता,जीवन मिटता देखदेख
सूफी हँसता," नाहक हैं परेशां लोग "
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उसका अट्टहास आज भी गूंज रहा है
खामोश वादियों में
क्यों हँसता था वो ,आज भी सोच में है
जोगी हँसता," कैसे ये दिमागी लोग "
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