* दिल दिमाग के बीच जो ठहरा चुका है !
तर्क-भाव की ऊँची ऊँची लहर बीच रुके
आभास में हो तुम
* चिल्मन का पर्दा बुद्धि-भाव की दूरी नहीं
परदे के इधर भी तुम ही तो रहते हो और
उधर भी हो तुम
* दिल और दिमाग की ग़लतफ़हमी है सब
ढूंढे से दिल में न मिले, ना ही दिमाग में
रुके हो तुम
* सतर्क रहो बहाव के बीच में धारा तरंग है
नाजुक डोर के इस छोर में बसते, न उस
छोर में हो तुम
* खुली आँख साकार है बंद की तो निराकार
ज्ञान और अज्ञान मध्य में ठहरे हुए नन्हे से
बिंदु में हो तुम
* किस नाम से पुकारूँ ! क्या शब्द दूँ तुमको
रेशम के एक नन्हे धागे के तार-तार हुए तार
के तार में बुने हो तुम
* क्या अभी भी मेरा अहसास प्यासा ! जबकि
हो ज्ञात तो अज्ञात भी तुम्ही,कणऊर्जा संयुक्त
व्योम-ऊर्जा में भी तुम ........
* सौर-मंडल मध्य, धरती के ह्रदय में जीवित
प्रकट अद्भुत जीव् अस्तित्व किन्तु सिमित
जीव मध्य में भी तुम ......
* व्योम में मध्यस्थान,मध्यमजीवन, मध्यमश्वांस
मध्यम में ही आध्यात्मिक अन्तस्तम का संतुलन
मध्यममार्ग का बुद्धज्ञान तुम .......
हो ज्ञात तो अज्ञात भी तुम्ही,कणऊर्जा संयुक्त
व्योम-ऊर्जा में भी तुम ........
* सौर-मंडल मध्य, धरती के ह्रदय में जीवित
प्रकट अद्भुत जीव् अस्तित्व किन्तु सिमित
जीव मध्य में भी तुम ......
* व्योम में मध्यस्थान,मध्यमजीवन, मध्यमश्वांस
मध्यम में ही आध्यात्मिक अन्तस्तम का संतुलन
मध्यममार्ग का बुद्धज्ञान तुम .......
_()_ Shiv-om pranam
ॐ नमः शिवाय
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