Monday, 16 February 2015

नन्हे से बिंदु में हो तुम



* दिल दिमाग के बीच जो ठहरा चुका है !
तर्क-भाव की  ऊँची ऊँची लहर बीच रुके  
आभास में हो तुम

* चिल्मन का पर्दा बुद्धि-भाव की दूरी नहीं  
परदे के इधर भी तुम ही तो रहते  हो और 
उधर भी हो तुम

* दिल और दिमाग की ग़लतफ़हमी है सब 
ढूंढे से दिल में न मिले, ना ही दिमाग में 
रुके हो तुम

* सतर्क रहो बहाव के बीच में धारा तरंग है
नाजुक डोर के इस छोर में बसते, न उस 
छोर में हो तुम

* खुली आँख साकार है बंद की तो निराकार 
ज्ञान और अज्ञान मध्य में ठहरे हुए नन्हे से 
बिंदु में हो तुम

* किस  नाम से पुकारूँ ! क्या शब्द दूँ तुमको  
रेशम के एक नन्हे धागे के तार-तार हुए तार 
के तार में बुने हो तुम 

* क्या अभी भी मेरा अहसास प्यासा ! जबकि 
हो ज्ञात तो अज्ञात भी तुम्ही,कणऊर्जा संयुक्त 
व्योम-ऊर्जा में भी तुम ........ 

*  सौर-मंडल मध्य, धरती के ह्रदय में जीवित
प्रकट अद्भुत जीव् अस्तित्व किन्तु  सिमित 
जीव मध्य में भी तुम ......

* व्योम में मध्यस्थान,मध्यमजीवन, मध्यमश्वांस 
मध्यम में ही आध्यात्मिक अन्तस्तम का संतुलन 
मध्यममार्ग का बुद्धज्ञान तुम .......


_()_ Shiv-om pranam

 ॐ नमः  शिवाय 

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