सत्य, प्रेम, सम्बन्ध, हानि और लाभ
कर्म,भाग्य, सृजन संग विसृजन भी
विश्वासों के भी घेरे और फेरे देखे है
धरती साथ हमसंगी संग में घूम रहे
सुनो ! यात्री ठहरे किस चक्र में हो !
घूमते मंडल के कमंडल "तुम्ही हो"
प्रतीकार्थ :- * सत्य - सच् जानने के लिए भटकते जीव
* प्रेम - वास्तविक प्रेम की परिभाषा खोजता
* सम्बन्ध - सांसारिक अथवा परा सम्बन्धी को श्रृंखला
* हानि - सांसारिक अथवा आध्यात्मिक हानि
* लाभ - धन सम्पदा पद प्रतिष्ठा रूप सौष्ठव आदि दिव्य अथवा सांसारिक लाभ
* कर्म - कर्म बंधन सांसारिक अथवा विश्वास जनित जन्मो से बंधे
* भाग्य - पिछला , इस जन्म का अथवा आगे का
* सृजन - खोज नित नयी , नित नए प्रयोग खोज के
* विसर्जन - समस्त भाव कर्मो का तर्पण करना
* संग - साथ साथ समस्त उपरलिखित भाव भाव चलते हुए
* विश्वास - अति विस्तृत और अति सूक्ष्म , कथन से परे अनुभव योग्य
* घूमता मंडल - ब्रह्माण्ड , समस्त तारागण , सौरमंडल अथवा अपने ही अंदर वैसे ही चक्कर लगा रहे तारागण के प्रतिबिम्ब डीएनए
* कमंडल - साधु का धातु पात्र जिसमे पवित्र जल भरा हो , अथवा अद्वैत अर्थ में ये शरीर कमंडल है जिसमे दिव्य जल भरा है
इतना पढ़ने के बाद ध्यान में अनुभव कीजियेगा " जिसको ढ़ूँढ़ते थे वो यही है इस पल में मेरी अपनी साँसों में गुथा हुआ है " अंतिम पायदान पे खड़े इस ध्यान भाव के साथ कर्ता भी हो स्वाहा !
( मित्रों ! कविताये सुगंध समान होती है , जिनको संवेदनशील के लिए सूंघना आसान होता है जिनका व्याख्यान अति विस्तृत अक्सर असंभव , आधा कहा और आधा अनकहा )
Om Pranam
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