Friday 11 July 2014

कांटें का साझा



इसे अनुभव कहो या  जीवन का फलसफा 
असंतुलित पलडे  प्रयासरत  संतुलन  को 

आंतरिक कम्पन से जूझते संतुलित पलड़े 
ठीक मध्य में कांपता  थरथराता  सा कांटा 

परम  मौनी  काँटा कभी कुछ बोला ही नहीं
आंदोलन  ही उसके असंतुलन संकेत देता

संघर्षयुक्त प्रयासरत वांछित  संतुलन को 
अथक परिश्रम मध्य में रुकने को इक्छुक 

किन्तु मध्य में ठहरा कांटा ही संतुलन नहीं
इस पार उस पार का  झुकाव  भी संतुलन है

झुका नीचे जो वजनी था हल्का ऊपर  गया
स्वेक्छिक कार्मिक बोझ बोध  से बैठ गया  

कहता रहा नहीं राजी  एक भी वजन देने को
तुम बढ़ा लो अपने में अपना कार्मिक  वजन

हास्ययुक्त अजब दास्ताँ  कांटे के साझे  की  
बिन साझा कांटे से  बँधी विवादित सुस्थता 

जारी है संतुलन के विभिन्न क्रम  महीन का 
जो थोड़ा इधर कभी औ कभी थोड़ा उधर हुआ 

अपना तराजू पलड़ों का अपनाअपना संतुलन
एकही तराजू के दो पलड़ों में मिलाप हुआ नहीं  

अपना पलड़ा, अपना संतुलन, कांटें का साझा  
वाद से पल्ला  झाडा यूँ पलड़े ने  किया  साझा 

संतुलन सुन्दर एक बना काजी बोझ  से राजी 
इक ऊपर उठ चला भारविहीन बन हवा केसंग  

सम्भलना ! कोई भी  धारणा बनाने से पहले 
क्यूँ की एक जैसा तराजू संसार में  दूजा नहीं

स्वयं का साक्षी भाव बना मध्य में ठहर स्वयं 
स्वयं में देखो स्वयं को जान  वहीं ठहर जाओ 

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