Thursday, 10 July 2014

मै समय हूँ



मैं ही हूँ महाभारत कथा का नाकारा सा हिस्सा

जिसके ऊपर रखा है , तमाम हत्याओं का बोझ



और मैं मशगूल हूँ , किस्से और कहानियों में


सुनने और सुनाने में , थोड़ा वक्त बहलाने में



तुम ही हो वो गांधारी , मैं आज का धृतराष्ट हूँ


सच दिखता नहीं जानने का प्रयास करता नहीं



तुमने मेरे अंधेपन को बढ़ा के खूब साथ दिया


कैसे पट्टी बांधे मात्र कौतुहलवश वार्तालीन हो



एक संजय चाहिए हर वक्त कथा सुनाने के लिए


दिल बहलाने के लिए और भाग्य कोसने के लिए



चीर फाड़ कर फेंक किया तहस नहस सब पल में


वख्त बदला आज दुर्योधन अर्जुन मिलेजुले लगते 



कृष्ण सभी में धुंधले द्रौपदी कुंती गांधारी चहु ओर


धृतराष्ट्र धर्मराज अर्जुन की खिचड़ी आजका राष्ट्र



कोई नहीं मरा कभी, सच ! कोई नहीं कभी मरता


रूप बदल के भेस बदल के सब आज भी मौजूद हैं 



तुम्हारे अंदर मेरे अंदर सबमें महाभारत मौजूद है


समाज देश परिवार सब में मेरा ही तो अस्तित्व है



पहले अलग पात्र थे अलग कार्मिक मुकुट पहनाये


अभी सभी में सब है छद्मी जानते है बचना बचाना



क्या कृष्ण हमेशा से सिर्फ नीतिपरक कृष्ण ही थे


क्या दुर्योधन सच में सिर्फ कपटी दुर्योधन ही था !



अर्जुन सिर्फ अर्जुन ही थे क्या सदा सदगुण भरपूर 


धर्मराज क्या कभी साधारण से युधिष्ठिर नहीं बने !



धृतराष्ट्र गांधारी क्या हमेशा लाचार थे या हो गए थे


क्या तब भी हर पात्र , हर वख्त, हर एक में रहता था 



शंका उठी है , आदमी तब भी थे आदमी आज भी है


तब भी महा भारत था और आज भी महा भारत है !




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