Thursday, 17 July 2014

मीता मोरे !



ॐ 

रुनझुनरुनझुन मौसम बरसे, न हुई बरसात 
बयार चलत दिखे न कँहू मोरे नैनं को आज 

अनहद गूंजे चहुँ झांझर ढोल मंजीरा थाप दें 
लचक चलिब संगमा, पायल बाजे थैया थैया  

झरझर झरती फूलन लड़ियाँ बनी कण्ठहार 
ठुमक छनछन बाजे झांझरवा पैरन मा आज 

खिले फूल ज्यूँ आकास मा तारा बूंदी चमके 
चलत चलीआयी इहाँ इब कछु कहा न जाये 

का नाम दूँ तोहका साँवरे ज्ञानीजन मोसे पूछे 
का बोलूँ कि लाज के मारे सबद ही गुम जाए 

मीता मोरे कर्मन की या गठरी अतिभारी भई  
काँधे थाकि गए जे मोरे कदम उठाये न जायें  

धन्यभाग लै लीन्ही म्हारी जन्मन् बँधी गठरिया 
कदम मिला के चलूँ झूम,संग तोरे मोरे नहुआ

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