Wednesday, 2 July 2014

सच्चाई





एक दिन एक सच्चाई नामकी शख्सियत से सामना हुआ

बोली मैं सच्चाई हूँ , पहचान लो , जान लो , भूलना नहीं 



थोड़ी दूर ही चले थे की अचरज दूसरी सच्चाई मिल गयी 

मैंने कहा तुम भी ! बोली वो उस वक्त की थी ,आज मै हूँ 


फिर  कुछ दूर चले ,एक और नकाब पहने सच्चाई मिली 

बोली मैं हूँ सच्चाई ,ढकी रहती हूँ हर वक्त सात पर्दो तले


माथा चकराया सच्चाईयों से मिलकर, सांस ली एक और 

चले कुछ और दूर की एक नई शख्सियत फिर खड़ी मिली 


पुछा तुम कौन! बोली मैं हूँ तुम्हारी और वो थी ज़माने की 

एक फर्क है मै रहती हूँ तुम्हारे दिल में और वो ज़माने में 


इतनी सच्चाई कैसे सम्भालू ? किसको मानू ! सोच में था 

एक धुंधली  छाया फिर दिखी बोली , मै हूँ सब की सच्चाई 


जो दिख कर भी नहीं दिखती, जिसका परिचय दे न सकोगे 

मिलती हूँ उसी को,जो मिल लेता है उन सारी सच्चाईओं से


मुझे मिलते ही वो सच्चाईयां माया सी उड़नछू हो जाती है 

तभी तो तुम मानोगे_जानोगे मुझ_सी ; एक ही सच्चाई को


जो दिख कर भी नहीं दिखती जिसका परिचय दे न सकोगे 

मिलती हूँ उसीको जो मिल लेता है उन सारी सच्चाईओं से !


क्या_क्या पूरा करोगे , इस अधूरे से मिले उपकरण के साथ 

कुछ नहीं कर पाओगे, उद्वेलित से व्यर्थ अंत में पछताओगे 


समझो_देखो_जानो_मानो_घुमो_टहलो मन के वृन्दावन में 

कान्हा की बांसुरी राधा का राग,और क्या सच ! बताओ जरा



पूरा कर पाने की चाहत और पूरा होने की चाहत में अधूरापन

सत्य  का अपूर्ण घेरा नहीं होता पूरा, बहते जाना, बढ़ते जाना 


आओ बैठो,मेरे प्यारे ! न भटको, देखो जानो
यही तो सच्चाईयों की , एक मात्र  सच्चाई है

यूँ ही बहते जाना सागर से मिल वापिस आना
फिर  बादळ  से पोखर या फिर नदी बन जाना

फिर बह चलना  इठलाते झूमते महासागर को 
क्या अभी भी नहीं समझे तुम इस चक्कर को 

सतत निरंतर जीवनक्रम इसको  भेद पाओगे 
न भटको  न ही उलझो जीवन को जीते जाओ 

ॐ 
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