बरसों दर्पण को साफ कर,जा अपना अक्स देखा
तब दिखाया पाया तुमको, देखो ! शीशा साफ़ है
ना समझ ने भरम कह , तोड़ दिया उस शीशे को
पलट जो देखा , हर टुकड़े में मै पूरा नजर आया
सुनो कथा पते की ! भाग्य से निर्धन भिखारी की
एक भिखारी हाथपसारे राह में भीख रहा था मांग
माँ पार्वती के भावुक होने पे ,शिव बने व्यापारी
व्यवसायी के पास थे हीरे,दिखता डरा वो चोरों से
दे के सारे चमकते नग भिखारी को वो चला गया
अभागा सोचा ! रोटी देता तो खाता, औ फेंक दिए
चोर पीछे से आया, देखे जमीं पे पड़े रौशन नगीने
जौहरी वो सब बिन झोली ड़ाल खुश हो चल पड़ा
हाय देखो ! मन्भञ्जक खेल खिलाती जाती माया
समझो तो खजाना , ना समझ आये तो है मिटटी
परमात्मा साक्षात आ के कुछ समझाए, पर हाय !
भाग्यमति आँखों पे पर्दा डाल, न समझने देती
शीशा मुझसे जुदा हुआ,जो दिखाता अक्स तुमको
शुक्र है ! दिल का नगीना महफूज धारणा प्रहार से
उत्सुक हो पूछा, गंदगी से कैसे इतना साफ़ किया
क्या कहते ! संसार के दर्द ने घिस_घिस धो डाला
और इसी से निकला था वो कुहू कुहू का गीत स्वर
जिसको तुम न सुन सके,घिर अपनी अवधारणा से
मैं कहता ही रहूँगा , क्यू की अब कर्म ही मर्म हुआ
जो सुन ले, जो भी समझ ले, जो भी साथ चल पड़े
गति का नहीं कोई हिसाब,न मालूम कब करवट ले
न जाने कौन सा शब्द ,किसको कितनी दूर लेजाये
चाहत नहीं सुने के न सुने , डर लगता है छलना से
जीवन भर अर्जितमिट्टी,कब धूलधूसरित हो जाये
ज्ञान का दिया जला , उसकी एक फूंक से बुझ जाये
समयबन्ध है सबकुछ, बहता जल है तुम भी पिलो
ये न समझना की , मेरे ह्रदय की सिर्फ ये पुकार है
जिन्होंने भी कुछ कहना चाहा, कुछ जानने के बाद
अनकहा आधा ही कह पाये, आधा कह के चले गए
आधा ही जगा पाये तुमको, आधा सोता छोड़ गए
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