Tuesday 1 July 2014

पल भर बैठो यहाँ !






कभी कभी छोटी सी बात भी बयां मुश्किल से होती है 
और बड़ी बात जुबान से रूह तक झट फिसल  जाती है 

पढ़ा  फिर कुछ जब्त किया और  कुछ उतार भी फेंका
दिमाग चीज़ है कैसी न साथ रहती है न छोड़ी जाती है 

यूँ  तो कभी बड़ी बातें आसानी से लोग कह गुजरते है 
छोटी सी कही बात का पचाना दुश्गवार होता जाता है 

गौर फरमाना ! इन छोटी छोटी बातों  में क्या रख्हा है 
मुश्किलें अक्सर  बड़ी-बड़ी बातों  में ही आया करती है 

शब्दों को पिरो तो लूँ बेमिसाल माला बना भी दू लेकिन 
मेरे भाव न तो रोते है न ही हँसते ,सन्न से होते जाते है 

काफ़िया  जो बोलू और दिल की आवाज़ न हो शामिल 
यहाँ सिर्फ शोर निकले  और शोर ही सुनाई देते जाते है 

भाव  गहरे उनको गहराई तो चाहिए जरूर तैरने के लिए
खाली बर्तन हो तो आवाज़ में टंकार बहुत होती जाती है 

दिल का दिया जलाया रौशनी के लिए पल भर बैठो यहाँ 
मिलने कहने से ख़राश दिल की जरा कम होती जाती है 


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