Friday, 11 July 2014

वो पुष्प अब खिलते नहीं



सभी मसरूफ है गर मोहब्बत में ऐ दोस्त !


बेगैरत साजिशो को अंजाम कौन दे रहा है ?


माना  अमन  चैन हर तरफ है  फैला  हुआ 

तो  कराहने की आवाजे कहाँ से आ रही है ?


कही  धुंधलका शाम  का  कही धुंआ रात का 


कही शम्मा सुलग रही , तो कही बुझने को है  


खामोश हवाये रात  के सहमे हुए से सन्नाटे 

झींगुर की गुनगुन और उठती दबती आवाजे 


चीरते  सन्नाटे को कुत्ते का रोना मुह उठा के 

माँ का घबरा के  लाल को सीने से दबा लेना 


घर के कोने में सहमाँ बैठा आदमी का बच्चा 

पापा का कहना,' बेटा समय से घर आ जाना ' 


दरवाजे मजबूत कुण्डिया  लोहे की खिड़कियां 


फिर भी  कालोनी के गेट पे चौकीदार  बैठा है 


गेट के बाहर शातिर इंसान घात  लगाये बैठे है 


धायं की हल्की आवाज़, सासो का बिखर जाना  


बटुआ घडी पर्स  चेन गाडी  कार्ड जो भी है गया 


रपट को गए , दरोगा बोले पहले सबूत ले आओ 


महिलाओं की क्या अभी मंत्री जी नहीं सुरक्षित 


बच्चियों की क्या सोचे, घर का कमरा काफी है


आज कवि की कविता से सुर्ख प्रेम-लहू टपक रहा 


प्रियतम तुझको दे सकूँ वो पुष्प अब खिलते नहीं 




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