Sunday 20 July 2014

नदी के किनारे



बड़ा धोखा है,  समझने और समझाने में ,
वे कहते,नदी के किनारे कभी मिलते नहीं 

गौर से देखो ऊपर से दो पर अंदर से एक 
ऐसेजैसे कभी जमीं से अलग हुए ही नहीं 

जल के नीचे जोड़े रहते हैं, इन्हे रेत_कण
अनगिनत हैं वे जो धरती की ताकत बने 

ऊपर से  इजाजत दी  पानी को बहने की 
नीचे से हाथों से धारा का वेग संभाले रहे 

जो प्रेम की हिलोरें अपने ह्रदय में संभाले
जिनके सुदृढ़ किनारे मध्य बहतेजलकण 

जिनके हाथो ऊपर फलते-खेलते  बचपन
खुद अलग होते न उनको कभी  होने देते 

सम्बन्धो  की मजबूत  पकड़  के ऊपर से  
नीर  जैसे  बहते जीवन, राह बनाते जाते 

मैंने देखा नदी के दो पाट  माँ -पिता जैसे 
सच है,दृष्टा की दृष्टि से दृश्य बदल जाते 


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