जंगल आग जल उठी
लपटे उन्नत उठ रही
किसी ने तपिश देखी
किसी ने सौंदर्य पाया
किसी ने भय-भीत हो
अग्निदेव दर्शन पाया
किसी ने चित्रभाषा दी
कवि ने गीत गा डाला
किसीने वो धुआं देखा
किसी ने भस्म बनती
सुलगती हुई चटकती
लकड़ियों से उड़ते वो
सुलगतेतैरते चमकते
राख - कण उड़ते देखे
और पाया नव जीवन
देख मिटते तैरतेउड़ते
चकमतेसुलगते शांत
राख कणो को दोबारा
धरती पे आ समूह में
इकठा होता राख - ढेर
उस शांत राख के ढेर
से उड़ चले कुछ कण
हवा संग उड़ बह गिरे
पर्बत शिला पे जा पड़े
तरंगितनृत्य युक्त हो
और मिले जा लहरों से
कुछ बैठे जा बगीचे में
सुगन्धितपुष्प हो उठे
Om
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